CGFlim.in डौंडीलोहारा के लोक सिरजन लोककला मंच के मेघेन्द्र जयसवाल ने कहा कि कला की साधना एक या दो दिन में नहीं होती है, इसके लिए लम्बा वक्त देना पड़ता है। सफलता का कोई शार्टकट रास्ता नहीं है। इस दरमियान मुश्किल दौर से भी गुजरना पड़ता है। जीवन में कब कौन सा मोड़ आ जाये किसी को ज्ञात नहीं है। इस संस्था को खड़ा करने मे खूब मेहनत करना पड़ा और आज देश भर के प्रतिष्ठापूर्ण करीब 80 मंचों में लगातार तीन सालों से प्रस्तुति देते आ रहे हैं।कई राज्यों में दी प्रस्तुतिजायसवाल ने आगे बताया कि छश्रीसगढ़ के अलावा मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा जैसे राज्यों में प्रस्तुति देने का सौभाग्य मिला है। इन्होने मोर मन के मीत छश्रीसगढ़ी फिल्म में प्रोड्यूसर के रूप मे काम किया है। इनके साथ सह कलाकार विष्णु कोठारी मीत ने डार्लिग प्यार झूकता नहीं, बेनाम बादशाह फिल्म में आवार्डेड है।टीम में कुल 35 सदस्यमेघेन्द्र जयसवाल ने कहा कि उनकी टीम कुल 35 सदस्य हैं। इनके प्रत्येक कलाकार आज भी प्रतिदिन अभ्यास में ज्यादा ध्यान देते है। इनके अमर गीत हाय वो तै नाचे बर आबे न… लोगों के जूब़ा है।
कोरोना काल में भी जारी रही प्रेक्टिसजायसवाल ने बताया कि कोरोना काल में चुपचाप नहीं बैठे थे, हालाकि मंचीय प्रस्तुति नहीं दे पाये, लेकिन प्रेक्टिस लगातार चलता रहा। एक कलाकार के लिए कला ही अर्थ का मुख्य साधन होता है। इसी पीड़ा को लघु कथा के रूप में अंतस के पीरा के रूप में प्रस्तुत किये हैं।छत्तीसगढ़ कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में अत्यंत समृद्धछत्तीसगढ़ कला एवं संस्कृति के क्षेत्र मे अत्यंत समृद्ध है। इसे सिरजाकर रखने की जिम्मेदारी प्रत्येक छत्तीसगढिय़ों की है। आगे बढऩे के लिए मेरे आदर्श लक्ष्मण मस्तुरिया, खुमान साव है उनसे मुझे प्रेरणा मिली है। जिसके बदौलत आज मंै इस मुकाम पर हूँ।नाना से मिला कला का वरदानउन्होंने बताया कि कला का वरदान मुझें मेरे नाना से मिला। मेरे माता-पिता इस क्षेत्र से कोसो दूर थे। पहली प्रस्तुति डौंडीलोहारा के मंच में ही किया। राजिम माघी पुन्नी मेला के मंच मे प्रस्तुति देकर अत्यंत प्रसन्न थे। कलाकारों के लिए प्रदेश सरकार के द्वारा पुन्नी मेला मे सम्मान किया जा रहा है, उसका उन्होने खूब तारिफ भी किया। उनके साथ मे उपस्थित लोक गायिका भावना सेन ने गीत गा कर महौल बना दिया।