Cgfilm.in छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध धर्म नगरी राजिम के साथ ही साथ समूचे छत्तीसगढ़ को विश्व पटल पर गौरवान्वित करने वाले भगवान राजीव लोचन अलग-अलग पर्वों पर अलग-अलग श्रृंगार करते हैं। आम तौर पर इस बात को तो प्राय: बहुसंख्यक लोग जानते हैं कि भगवान का बाल्य अवस्था, युवा अवस्था एवं वृद्ध अवस्था के रूप में श्रृंगार किया जाता है, लेकिन इस बात को प्राय: अधिकांश दर्शनार्थी नहीं जान पाते हैं कि किस-किस पर्व पर भगवान राजीव लोचन का किस रूप में और किन वस्तुओं के साथ श्रृंगार किया जाता है। ‘राजिम पुन्नी मेला” के पावन अवसर पर यह महत्वपूर्ण जानकारी….-
चैत्र शुक्ल रामनवमी (नवरात्र):चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से प्रतिदिन दैनिक प्रात: अभिषेक पूजा के पश्चात प्रात: 10.00 बजे से भगवान का महाभिषेक दूध, घी, दही, मधु, शक्कर से होता है। तथा इस पर्व में नौ दिन तक प्रतिदिन अलग-अलग स्वरूपों में श्रृंगार किया जाता है। इस श्रृंगार में गुलैची फूल के हार का विशेष महत्व होता है। नवे दिन भगवान राम का जन्मोत्सव मनाया जाता है व, दसवें दिन शांति अभिषेक के साथ ब्राम्हण भोजन करा कर दक्षिणा दिया जाता है। इस पर्व के साथ ग्रीष्म काल प्रारंभ हो जाता है। इस कारण दोपहर दो बजे घंसाजल अर्थात शरबत के साथ अनरशा का भोग लगाया जाता है, जो प्रतिदिन रथयात्रा तक चलता है।
अक्षय तृतीया: इस दिन प्रात: श्री बद्रीनारायण जी की जयंती अभिषेक पूजा के साथ संपन्न होता है तथा सायं काल में श्री बालाजी भगवान की पालकी सहित शोभायात्रा निकाली जाती है, जो श्री कुलेश्वर नाथ मंदिर में पहुंचती है। श्री बालाजी का जलाभिषेक पश्चात श्रृंगार किया जाता है। तदोपरांत श्री बालाजी भगवान को घंसाजल (शरबत) एवं काजू, किसमिस का प्रसाद अर्पित किया जाता है। इस धार्मिक आयोजन का आशय श्री राजीवलोचन का श्री कुलेश्वर नाथ जी से मिलन का है।
रथयात्रा: आषाढ़ शुक्ल पक्ष प्रतिपदा भगवान श्री जगन्नाथ का नेत्रोत्सव पूजा विशेष विधान से किया जाता है। उसके दूसरे दिन द्वितीया को भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा होता है इस पूजन में आम व चिरई जाम व अंकुरित मूंग व चना का प्रसाद चढ़ाया जाता है।श्रावणी पूजा: यहां श्रावणी पूजा हरियाली अमावस्या से शुरू होकर भाद्रपद अमावस्या पोला पर्व तक मनाया जाता है, जिसमें भगवान श्री राज राजेश्वर महादेव का प्रतिदिन वैदिक रीति से महाभिषेक पूजन होता है एवं इसी कड़ी में संगम में विराजित श्री कुलेश्वर नाथ भोले बाबा का भी विशेष पूजा व श्रृंगार होता है।श्रावण झूला: ब्रज में श्रावण झूला का जो महत्व है, ठीक उसी तरह यहां भी श्रावण शुक्ल तृतीया से एकादशी तक नौ दिन तक झूला उत्सव मनाया जाता है जिसमें भगवान राधाकृष्ण के लिए झूला सजाया जाता है व उस झूले में नौ दिन तक श्री राधाकृष्ण को झूलाया जाता है। इस पर्व में प्रतिदिन दोपहर कीर्तन प्रवचन का कार्यक्रम चलता है।
नाग पंचमी: श्रावण झूला पर्व के मध्य पंचमी को भगवान श्री राजीवलोचन का विशेष पूजा व श्रृंगार होता है, जिसमें मंदिर के गर्भगृह को कमल दल व पूरैन पत्ता से यमुना नदी का स्वरूप दिया जाता है व भगवान को शेषनाग के फन पर खड़े हुए प्रदर्शित किया जाता है, जिससे कालिया मर्दन का रूप दिखाई देता है।
श्रावण एकादशी: श्रावण मास शुक्ल पक्ष पुत्रदा एकादशी को भगवान श्री राजीवलोचन के गर्भगृह को जल, कमल पुष्प, पत्र, वट वृक्ष व कदम वृक्ष से सुशोभित किया जाता है, जिसके मध्य में गज व ग्राह (मगर) का विग्रह को रखा जाता है जो गज, ग्राह मोक्ष के दृश्य को परिलक्षित करता है जिसमें भगवान के सुदर्शन चक्र से ग्राह के मुख का भेदन, व गज के द्वारा पदम पुष्प ले कर श्री हरि को प्रार्थना करते हुए एवं गज की विनम्र प्रार्थना को स्वीकार करते हुए दर्शन होते हैं। भगवान के इस अद्भुत स्वरूप को दर्शन करने से दुख:शोक का शमन होता है। इसी कामना को लेकर भक्त जन श्लोक वंदन एवं प्रार्थना करते हैं।
रक्षा बंधन: इस पर्व के दिन भगवान श्री राजीवलोचन के दिव्य मोहनी स्वरूप का दर्शन होता है, जिसमें भगवान को ‘नारी मोहनीÓ का श्रृंगार किया जाता है। इसका आशय श्री लक्ष्मीनारायण के एकाकार रूप से है, दैत्यराज बली से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु पाताल लोक में बली की सेवा में रहते हैं, जिसे वापस लाने हेतु मां लक्ष्मी द्वारा राजा बली को रक्षा बंधन बांध कर बदले में श्री विष्णु जी को पाताल लोक से वापस लाते हैं इस परंपरा अनुसार एकाकार रूप अर्थात श्री महालक्ष्मी के रूप में इस दिन दर्शन होते हैं।
जन्माष्टमी: भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव को यहां भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी को रात्रि 12 बजे विशेष पूजा अभिषेक के साथ मनाया जाता है। इस दिन भगवान के बाल रूप का मोहक दृश्य देखने को मिलता है। दूसरे दिन दही लूट का पर्व मनाया जाता है, जिसमें गाजे बाजे के साथ नगर भ्रमण किया जाता है। दोपहर में भगवान को विशेष भोजन व मिष्ठान का भोग लगाया जाता है।
जलक्रीड़ा एकादशी: भाद्रपद शुक्ल एकादशी को जलक्रीड़ा एकादशी मनाया जाता है, जिसमें भगवान राधाकृष्ण (बालाजी व शालिग्राम) को नगर भ्रमण पश्चात नदी में नाव द्वारा जल विहार कराया जाता है।
विजयादशमी : आश्विन मास की शुक्लपक्ष की दशमी तिथि को यह गरिमामय पर्व न्याय की अन्याय पर जीत, धर्म का अधर्म पर विजय इस दार्शनिक पक्ष को उजागर करते हुए सायं कालीन बेला में भगवान श्री राजीवलोचन रामावतार में संपूर्ण साज-सज्जा एवं बाजे-गाजे के साथ दिव्य शोभायमान होकर पूरी भव्यता को लेकर दक्षिण दिशा में प्राचीन रावण की प्रतिमा का अलौकिक संहार करते हैं जिसमें भगवान के प्रतिनिधि के रूप में मंदिर के सर्वराकार कटार से लोकाचार अनुसार रावण वध का कार्य संपन्न करते हैं। रावण वध के पूर्व अंगद एवं रावण के प्रतिनिधि बने हुए महानुभव द्वय द्वारा छंद युक्त एवं दोहा परक शैली में संवाद विशेष आकर्षण एवं जिज्ञासा का केन्द्र होती है तदुपरांत रघुवंश के आदर्श राजा राम के महान पराक्रम को याद करते हुए स्वर्ण पत्र का वितरण किया जाता है जिससे वंधुत्व की भावना एवं सामाजिक समरसता की एक झलक देखने को मिलती है।
शरद पूर्णिमा: शरद पूर्णिमा का पावन पर्व आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा की रात्रि 12 बजे पूरे हर्षोल्लास के साथ मंदिर प्रांगण में मनाया जाता है, यह सर्वविदित है कि भगवान परब्रम्ह कृष्ण गोपियों से दिव्य एवं दुर्लभ सोलह कलाओं से युक्त चंद्रमा समक्ष वृंदावन में अद्भुत रासलीला संपन्न की थी। उसी दिव्य क्षण को याद करते हुए ‘ब्रज विलास’ नामक ग्रंथ का व्याख्यान स्थानीय रामायण मंडलीत के द्वारा किया जाता है व अमृत वर्षा हेतु खीर, प्रसाद से भगवान को भोग लगाया जाता है। राजिम नगरी के अधिकांश जनमानस रात्रि के समय मंदिर प्रांगण के विशेष पूजा में शामिल होते हैं, जहां सभी को खीर प्रसाद वितरण किया जाता है।कार्तिक महात्म्य (पोथी पूजा): मंदिर में यह अनुष्ठान कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा से कार्तिक पूर्णिमा तक एक माह चलता है। हिन्दू धर्म शास्त्रानुसार वर्ष के बारह मास में कार्तिक मास को जप, तप, दान हेतु श्रेष्ठ माना गया है। इसी तारतम्य का श्लोक वाचन कर उपस्थित भक्त श्रोतावृन्द को उनके रूचिकर भाषा शैली में कार्तिक महात्म्य पर कथा श्रवण कराते हैं। अंतिम दिवस ट्रस्ट कमेटी के द्वारा यथोचित दान दक्षिणा द्विजश्रेष्ठ पौराणिक जी को दिया जाता है।
दीपावली महालक्ष्मी पूजा : कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या को गोधूली बेला में हिन्दू धर्म शास्त्र सम्मत आचार्य के मंत्रोच्चारण के मध्य विशेष महालक्ष्मी की पूजा मंदिर प्रांगण में संपन्न की जाती है, जिसमें विशेष रूप से भगवान के मुकुट समस्त अलंकार हीरे मोती जवाहरात से युक्त कुंडल आदि की पूजा मानस पटल को दिव्य अनुभूति प्रदान करते हैं। इस दिन भगवान श्री कमल नयन का विशेष सोलह श्रृंगार का दर्शन हृदय को सच्चा सुख प्रदान करता है।अन्नकूट: समस्त पर्वों के भी पर्व के रूप में अन्नकूट महापर्व कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है। इस दिन भगवान साक्षात गोवर्धननाथ के रूप में दर्शन देते हैं। पारंपरिक धर्म ग्रंथानुसार, भगवान की यदुवंशी मोर पंख युक्त वेशभूषा का दर्शन हृदय को दिव्य आनंद प्रदान करता है। इस दिन प्रात: से ही 56 प्रकार के भोग जिसमें विशेष पकवान लड्डू, खाजा, पिडिय़ा आदि सामग्रियों का विहंगम दर्शन सभी दर्शनार्थियों के लिए कौतुहल का विषय बना रहता है। गोवर्धन पहाड़, व्यंजनों से तैयार कर बांके बिहारी के रूप में शालिग्राम भगवान की षोडशोपचार पूजा, आचार्य के द्वारा संपन्न करायी जाती है। तदुपरांत 56 भोग का वितरण हजारों की संख्या में आए भक्तजनों को की जाती है।
तुलसी विवाह: यह दिव्य मिलन पर्व कार्तिक शुक्ल पर्व की देवउठनी एकादशी तिथि को मनाई जाती है,
नाम से ही स्पष्ट है कि भगवान श्री हरिनारायण आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक महानिद्रा से इसी तिथि को जागृत होते हैं। इसलिए यह पर्व जागरण पर्व के रूप में मनाया जाता है, प्रमाणित धर्मग्रंथानुसार इसी तिथि को भगवान विष्णु शालिग्राम, मां वृन्दारानी (तुलसी) के साथ पाणिग्रहण किया था, इसी गाथा को जीवंत रूप में रात्रि के समय तुलसी महाविवाह के रूप में मनाया जाता है जिसमें आचार्यगण वैदिक रीतिनुसार विवाह संपन्न कराते हैं। शालिग्राम के बारात में भक्तजन पटाखे आदि जलाते हुए शामिल होते हैं, और एक मनोरम दृश्य उपस्थित होकर शाखोच्चार, यज्ञ हवन के द्वारा मां तुलसी जी का विवाह भगवान शालिग्राम से कराया जाता है जिसमें आलौकिक दिव्यानंद की प्राप्ति होती है इसी विधि से हिन्दु रीति के अनुसार विवाह आदि मांगलिक कार्य आरंभ होते हैं।मकरसंक्रांति: यह पर्व मूलत: सूर्य पर्व के रूप में मनाया जाता है, इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, जिसे उत्तरायण प्रवेश के रूप में भी जाना जाता है, गृह, देव प्रतिष्ठा आदि उत्तरायण में कराए जाने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है, इस पर्व के दिन प्रात: नदी स्नान उपरांत भक्त जन भगवान को तिल लड्डू, स्वर्ण, कांसे के बर्तन में अर्पित करते हैं। इस दिन भगवान का विशेष श्रृंगार होता है एवं तिल गुड़ का भेंट चढ़ाया जाता है।
बसंत पंचमी: यह पर्व ऋतुओं के राजा बसंत ऋतु के शुभागमन में मंदिर परिसर में बाजे गाजे के साथ मनाया जाता है, डोला में मां सरस्वती की विशेष आराधना जयंती पूजा के बाद आम के मौर आदि से सुसज्जित होकर भगवान राजीवलोचन के रूप में बालाजी को नगर भ्रमण कराया जाता है। यहां विशेष भीनी-भीनी सुगंध देने वाला आम्र का मौर परमात्मा को समर्पित कर उनका स्वागत समस्त नगर वासियों के द्वारा किया जाता है।माघ पूर्णिमा मेला : मंदिर में मनाये जाने वाले समस्त उत्सवों के राजा के रूप में माघ पूर्णिमा को, भगवान श्री राजीवलोचन के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान का विशेष सोलह श्रृंगार होता है, और वर्ष भर में यही एकमात्र ऐसा दिन होता है, जिस दिन भगवान के दरवाजे प्रात: 4 बजे से रात्रि 10 बजे तक लगातार खुला रहता है। ऐसी कथा प्रचलित है कि इस दिन भगवान श्री जगन्नाथ, पुरी धाम से भगवान श्री राजीवलोचन के दर्शन हेतु पहुंचते हैं। इस कारण इस दिन जगन्नाथ पुरी का पट बंद रहता है। इस दिन प्रात: 4 बजे से ही नदी स्नान उपरांत अपार जन सैलाब परमात्मा के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। भगवान के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में प्राचीन काल से मेला पर्व का आयोजन होता रहा है, जिसे छत्तीसगढ़ शासन ने और अधिक भव्यता प्रदान करते हुए राजिम कुंभ पर्व राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जा रहा है।
यहां पूरे भारत वर्ष से पधारे साधु-संत एवं मठ पीठाधीश्वर, आदि गुरु शंकराचार्य आदि का दर्शन लाभ होता है। इस दिन माघ पूर्णिमा में मध्यान्ह में निशानपूजा साथ ही ध्वज पूजन कर हनुमान आराधना करते हुए शिखर में महाध्वज चढ़ाई जाती है, जिसका दर्शन समस्त पापों को क्षमा कर देती है। पूरे भारत वर्ष में 15 दिनों तक श्री राजीवलोचन के जन्मोत्सव में शामिल होने दूर-दूर से पर्यटक पहुंचकर, अपना जीवन धन्य अनुभव करते हैं।महाशिवरात्रि : यह महापर्व फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी को श्रद्धा एवं विश्वास के प्रतिमूर्ति अभयंकर भोलेनाथ की निशा पूजा के रूप में मनाया जाता है। भगवान श्री राजीवलोचन के मंदिर प्रांगण से मध्यान्ह काल में भोलेनाथ की शोभा यात्रा गाजे-बाजे के साथ जय-जयकारा करते हुए मंदिर सर्वराकार, ट्रस्ट कमेटी के अध्यक्ष, सचिव सभी पदाधिकारीगण, पुजारीगण व आचार्यगण नदी में स्थित महा उत्पलेश्वरनाथ (श्री कुलेश्वरनाथ) मंदिर पहुंचकर विशेष पूजा अभिषेक करते हैं।
उपरांत सभी महानुभावगण के द्वारा समस्त द्वादश शिवलिंगों के षोडशोपचार पूजन करते हुए थानापारा स्थित श्री भुवनेश्वर नाथ महादेव के वैदिक पूजा के साथ विराम होता है। इस दैवीय वातावरण में कुंभीय महोत्सव का अनुपम आनंद लेते हुए रात्रि कालीन पूजा मंदिर के पूजारीगण द्वारा श्री कुलेश्वरनाथ व श्री राजराजेश्वर नाथ का अभिषेक आचार्य के मंत्रोच्चारण के मध्य संपन्न होता है। पूरी रात्रि शिवमय हो जाती है और शायद महाशिवरात्रि नाम की यही सुखद सार्थकता भी है।होली: यह आनंद का पर्व पूरे हर्षोल्लास के साथ फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा की रात्रि को दूषित भावनाओं के विसर्जन के रूप में होलिका दहन किया जाता है, ठीक दूसरे दिन हिन्दू धर्म के प्राचीन संस्कृति अनुसार नए वर्ष का शुभागमन धुलेड़ी पर्व के रूप में होली का पर्व रंग गुलाल भगवान को लगाकर मनाया जाता है। अपरान्ह काल में भगवान श्री राजीवलोचन की विशेष श्रृंगार का अद्भुत दर्शन पाकर जन सैलाब नए संवत्सर का शुभागमन स्वागत करता है। सायंकालीन बेला में नगाड़े की धुन में समस्त पूजारीगण, दर्शनार्थीगण एवं महात्मागण रंग-बिरंगे गुलाल से भगवान श्री बालाजी के साथ होली खेलते हैं। ऐसा लगता है मानो पूरी राजिम नगरी वृंदावन बन गई है।