CGgilm.in दिन भर जांगर टोर मिहनत के सेती थके-मांदे मनखे के मनोरंजन खातिर हर युग म कोनो न कोनो साधन अवस कर के होवत रिहीसे। देश-काल के मुताबिक एमा बदलाव आवय, अउ एकर संगे-संग विषय-वस्तु घलोक बदलत जावय। आजादी के आंदोलन जब गुंगवा के भभके बर धर लिए रिहीसे, ठउका उही बेरा म छत्तीसगढ़ म एक लोक विधा के जनम होइस, जेला नाचा नांव दे गइस। राजनांदगांव के दाऊ मंदरा जी ल ए नाचा विधा के जनमदाता माने जाथे। जेन ह उन्नीसवीं सदी के तीसरा दशक म ए विधा ल जनरंजन के संगे-संग जनजागरण के माध्यम बनाइन।
दाऊ मंदरा जी के ही बेरा म एक अउ प्रतिभा के जनम होइस जेला मदन निषाद के नांव ले छत्तीसगढ़ के संगे-संग पूरा देश के लोककला प्रेमी जनता जानथें। जिला राजनांदगांव के डोंगरगांव तीर के गांव बिटाल म 2 फरवरी सन 1914 म मदन निषाद के जनम होइस। फेर भाग के लेखा वोला मात्र चार बछर के उमर म ही राजनांदगांव के मोहरा गांव म ले आइस। बताथें के वो बखत के परे दुकाल के सेती वोकर जनम भूमि बिटाल म रोजी-रोटी के बिकराल समस्या उत्पन्न होगे, इही पाय के वोकर पूरा परिवार ल मोहरा म बसे ले परगे।
बिटाल के आके मोहरा म बसे के एक फायदा ए होइस के मदन ल लइकईच उमर ले कलाकार मन के संगती मिल गे। मदन तो जनम जात कलाकार रिहीसे। कहिथें न के होनहार पूत के पांव पालनच म दिख जाथे। ठउका इही बानी वोकर भीतर के कलाकार ह लइकईच म दिखे बर धर लिए रिहीसे, तभे तो गांव के नाचा मंडली वाले मन आठ-नौ बछर के उमर म ही वोला अपन मंडली म शामिल कर लिए रिहीन हें। मोहरा गांव के ये नाचा मंडली म मदन के बड़े भाई ईतवारी निषाद घलो कलाकारी करय।
बीसवीं शताब्दी के तीस-चालीस के दशक म छत्तीसगढ़ म शिक्षा के अंजोर वतेक बगर नइ पाये रिहीसे, एकरे सेती वो बेरा म कोनो भी किसम के नाचा-गम्मत या मनोरंजन के अउ दिगर माध्यम म कोनो भी घर के सियान मन नारी परानी मनला वोमा भाग नइ लेवन देवत रिहीन हें। एकरे सेती अइसन जब कोनो उदिम करे जाय, त नारी पात्र के भूमिका ल पुरुष मन द्वारा ही पूरा करे जाय। मदन निषाद के अभी केंवची उमर रिहीसे। एकरे सेती वोला नजरिया (महिला पात्र) के भूमिका खातिर जोंगे गीस।
जेन लइका ह अभिमन्यू बरोबर महतारी के कोंख ले कलाकारी के ज्ञान ले के आए रिहीसे, वोला भला नजरिया या परी के रोल निभाए म कतेक बेरा लागतीस। छीन काहत वो नाचे अउ गाये बर सीखगे। वो नारी के भूमिका म अतेक बूडग़े के नारी मन के जीवन-चरित्र मन ऊपर आधारिज प्रहसन खुदे बनाये लागीस। वइसे घलोक वो दौर म नारी मन ऊपर आधारित प्रहसन मन के जादा मांग रहय, एकरे सेती वो ह मछरी वाली, डउकी के झगरा, केंवटीन-मरारीन, ठग्गू बइगा, बासी मंगइया, बइहा, सउत जइसे कतकों अकन प्रेरक अउ मनोरंजक प्रहसन बना डारीस।
नाचा के ये गम्मत मन न सिरिफ मनोरंजक होवय भलुक सामाजिक, आर्थिक अउ राजनैतिक जागरण के काम घलोक करयं, ए जगा ए बात ल बताना जरूरी लागत हे के द्वितीय विश्व युद्ध के खलबलावत बेरा म दुरुग जिला के आमदी गांव म रवेल वाले दाऊ मंदराजी के नाचा ल बंद कराये खातिर फिरंगी पुलिस पहुंचगे रिहीसे। काबर ते गम्मत के बीच म जेन गीत गाये जाथे वोमन म आजादी के गीत घलोक रहय। संग म संवाद मन घलोक अइसन भाव लिए रहय।
ये जुझारू बेरा के आवत ले मदन निषाद 20 बछर के बांका जवान होगे रिहीसे। मेछा के रेख गढ़ाए ले धर लिए रिहीसे, एकरे सेती अब वो परी के पाठ करई ल छोड़ के जोक्कड़ के पाठ करे लागीस। वइसे तो परी के पाठ करत ही श्रेष्ठ कलाकार के रूप म वोकर नांव के डंका बाजे बर धर लिए रिहीसे, फेर जोक्कड़ बने के बाद तो महानायक के श्रेणी म शामिल होगे। ठउका इही बखत ले वो ह नाचा के पितृपुरुष दाऊ मंदराजी संग शमिलहा कलाकारी करे लागीस। मंदराजी के रवेली अउ मदन के रिंगनी नाचा पार्टी के विलय होगे, तब एकर मन के शमिलहा नांव बनीस रवेली- रिंगनी साज। ये रवेली-रिंगनी साज ह अपन बेरा म भारी धूम मचाइस। वो बखत मदन अउ लालू के जोड़ी ह भारी चर्चित रिहीस।
जेन बखत नाचा ल खड़े साज, माने तबला, हारमोनिम, अउ चिकारा आदि बाजा-रुंजी मनला कनिहा म बांध के खड़े होके नाचयं, अंजोर खातिर माटी तेल म बोरे बरत मशाल ल धरे रहयं, वो बेरा म ये रवेली-रिंगनी साज जगा बड़े-बड़े नाटक थियेटर जइसन साजो समान रिहीसे। एकर मन जगा खुद के लाईट, माईक अउ जनरेटर रिहीसे। वो समय म नाचा ह पूरा रात भर चलय अउ बेरा जब पंगपंगाये ले धरय तहांले दर्शक मन अपन-अपन घर के काम-बुता के ओखा म भरभरा के उसले बर धर लोवयं एकरे सेती मदन निषाद ह ठउका मुंदरहा के पंचबज्जी के बेरा अइसे जोरदार गम्मत चालू करय ते लोगन वोकर सिरावत ले, मान…
सन 1958 म वो ह अपन मंडली संग रायपुर के पं. माधव राव सप्रे स्कूल म अपन अभिनय के जौहर देखाइस, जिहां प्रसिद्ध रंगकर्मी अउ नाट्य निर्देशक हबीब तनवीर के मन-अंतस म वोकर अभिनय उतरगे। एकरे साथ वोकर जुड़ाव हबीब के संस्था नया थियेटर संग होगे, अउ फेर तहांले वोकर कलाकारी ह छत्तीसगढ़ के सीमा ल लांघ के देश-विदेश म अपन सफलता के परचम लहराए लागीस। वो ह हबीब तनवीर संग सन 1975 तक सरलग जुड़े रिहीस। वोकर निर्देशन म मिट्टी की गाड़ी, रूस्तम-सोहराब, मिर्जा सोहरत, आगरा बाजार, चार भाई चना, कुस्तियों का चपरासी, चरण दास चोर, गांव के नाम दमांद मोर नाम ससुर आदि मुख्य नाटक मन म काम करीस।
हबीब तनवीर के छोड़े अउ आने निर्देशक मन संग घलो मदन निषाद ह काम करे हे, एमा त्रिपुरारी शर्मा के निर्देशन म बिरसा मुंडा, राम हृदय तिवारी के निर्देशन म लोरिक चंदा, लक्ष्मण चन्द्राकर के निर्देशन म हरेली, दीपक चंद्राकर के निर्देशन म गम्मतिहा आदि प्रमुख हे।ए नाटक के संगे-संग कई ठन धारावाहिक अउ फिलिम मन म घलोक काम करे हवय। देश के प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल संग घलोक काम करे के अवसर मदन ल मिले हे, उंकर निर्देशन म बने फिलिम ‘मैसी साहब* म अभिनय कर के वोहर मुंबई के बॉलीवुड ल घलोक अपन जौहर के जलवा देखाए हे।
वोकर कला जीवन के लम्बा अनुभव अउ योगदान ल देखत मध्यप्रदेश शासन ह सन 1988 म तुलसी सम्मान ले वोला सम्मानित करे रिहीसे।जीवन के आखिरी बेरा तक कला-देवी के उपासना करइया मदन निषाद ह 19 फरवरी सन 2005 के ये नश्वर शरीर ल छोड़ के कला के देवी म ही समाहित होगे।कहिथें न के विराट पुरुष मन सिरिफ अपन चोला बदलथें, अपन आत्मा अउ अनुभव ल अवइया पीढ़ी ल अरपित कर देथें। मदन निषाद घलोक अपन आत्मा अउ अनुभव ल गोविंद निर्मलकर जइसन कतकों ये रस्ता के रेंगइया मनला अरपित कर दिस, जेकर परसादे गोविंद निर्मलकर ल पद्मश्री जइसन प्रतिष्ठापूर्ण सम्मान ले सम्मानित करे गीस।नाचा के रूप खड़े साज ले होवत सांस्कृतिक मंच अउ आर्केस्टा तक पहुंचगे हवय, फेर जब तक ए हर जिंदा रइही, अपन मनोरंजन के माध्यम ले लोगन के पीरा हरत रइही, तब तक मदन निषाद जइसन नाचा के पुरोधा मन अमर रइहीं।