cgfilm.in दुर्ग के वीर नारायण सभागार में रायपुर की नाट्य संस्था अग्रगामी द्वारा शंकर शेष लिखित प्रसिद्ध नाटक ‘कोमल गांधार’ का मंचन किया गया। यह आयोजन नवीन शासकीय संगीत महाविद्यालय दुर्ग एवं शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय दुर्ग की साहित्यिक एवं नाट्य समिति के संयुक्त तत्वावधान में था। गौरतलब है कि सुप्रसिद्ध नाट्य निर्देशक जलील रिज़वी व्दारा निर्देशित ‘कोमल गांधार’ को अनेक स्थानों में पुरस्कार और प्रशंसा मिल चुकी है।
इस अवसर पर वरिष्ठ रंगकर्मी स्व जलील रिज़वी के रंगमंच को दिए अमूल्य योगदान को याद करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की गई। साथ ही उनकी धर्मपत्नी एवं वरिष्ठ कलाकार श्रीमत का सम्मान किया गया। मुख्य अतिथि वी वाय टी दुर्ग के प्राचार्य डॉ अजय सिंह ने कहा कि रंगमंच के प्रति नूतन मैडम का झुकाव अभिनंदनीय है। नाटक के प्रति उनके समर्पण को मैं प्रणाम करता हूँ । संगीत महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ ऋचा ठाकुर ने अपने अनुभव को साझा करते हुए युवाओं में नाटक के प्रति रुझान जागृत करने के लिए प्रोत्साहित किया।
श्रीमती नूतन रिज़वी ने अपनी नाट्य यात्रा को बताया। विशेष अतिथि डॉ कुंज बिहारी शर्मा पूर्व प्राचार्य ने रंगकर्म की विशेषताओं पर अपनी बात कही। नाटक देखने पधारे नाट्यकर्मी मणिमय मुखर्जी एवं विद्या गुप्ता ने इस मंचन को सराहा। अग्रगामी संस्था के कलाकार श्रीमती नूतन रिज़वी. प्रकाश खांडेकर, नीरज गुप्ता, आचार्य रंजन मोड़क, शेखर शुक्ल, चंद्रलोक मिश्र, महेंद्र साहू अलका दुबे एवं सौम्या रिज़वी ने अपने अभिनय कौशल से दर्शकों को प्रभावित किया।
इस आयोजन में नामचीन कलाकार सुचित्रा, शक्तिपद, राजेश श्रीवास्तव, गिल्बर्ट ,संजय पांडे ,सरिता श्रीवास्तव ,सरिता साहू रोशन गडेकर ,डॉ अनुपमा कश्यप, प्रशांत दुबे तरुण साहू आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ निधि वर्मा ने किया। विशेष सहयोग गजेन्द्र यादव , सर्वजीत बाम्बेश्वर संगीता अपराजिता धनराज का रहा।
हाल ही में शहर के प्रमुख रंगमंच पर नाटक ‘कोमल गांधार’ का भव्य मंचन हुआ। इस नाटक ने न केवल रंगमंच प्रेमियों को आकर्षित किया, बल्कि दर्शकों के दिलों में एक गहरी छाप छोड़ी। नाटक की कहानी, अभिनय और संगीत का अद्भुत संयोजन दर्शकों को एक अलग ही अनुभव दे गया।
‘कोमल गांधार’ नाटक भारतीय संगीत, संस्कृति और पारिवारिक रिश्तों की गहरी पड़ताल करता है। नाटक में मुख्य भूमिका में अभिनेता और अभिनेत्री ने अपने अभिनय से दर्शकों को भावनाओं के जटिल मिश्रण में डुबो दिया। नाटक का केंद्र संगीत था, जो न केवल कहानी को आगे बढ़ाने का काम करता था, बल्कि पात्रों के मानसिक और भावनात्मक संघर्षों को भी उजागर करता था।
इस नाटक के लेखक और निर्देशक ने इसे एक परिष्कृत तरीके से प्रस्तुत किया, जहां दर्शकों को हर एक दृश्य में भारतीय कला और संस्कृति की गहरी समझ दिखाई देती थी। इसके साथ ही, संगीत और नृत्य के विशेष संयोजन ने नाटक में चार चाँद लगा दिए। संवादों की गहराई और पात्रों के आपसी रिश्तों को इस तरह से दर्शाया गया कि दर्शक पूरी तरह से भावनात्मक रूप से जुड़ गए।
मंच पर हर दृश्य की प्रस्तुति बहुत ही आकर्षक थी। अभिनेता अपने किरदारों में इस प्रकार घुसे हुए थे कि उनके अभिनय को देख दर्शक हर पल सजीवता का अनुभव करते रहे। नाटक की प्रकाश व्यवस्था और मंच सजावट ने इसे और भी प्रभावशाली बना दिया।
नाटक का समापन बेहद भावुक और मन को छू लेने वाला था, जिसे देखकर दर्शकों ने खड़े होकर तालियाँ बजाई। ‘कोमल गांधार’ न केवल एक नाटक था, बल्कि एक पूरी सांस्कृतिक यात्रा थी, जो दर्शकों को भारतीय कला की गहरी समझ और प्रेम के भाव में डुबो गई।
इस नाटक का मंचन रंगमंच के प्रति समर्पण और कला के प्रति श्रद्धा का प्रतीक था। उम्मीद है कि ऐसे और भी नाटक आगे रंगमंच पर देखने को मिलेंगे।
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