CGFilm.in सीजीफिल्म.इन (एकान्त चौहान)। कमजोर कलाकार शीघ्र ही प्रसिद्धि चाहते हैं, वे इसके लिए शार्टकट रास्ता अपनाते है, जो उचित नहीं है। हम जो देंगे आने वाली पीढ़ी वही सीखेगी। आज पारंपरिक लोकगीत को लोग भूल रहे हंै।यह बातें छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध कलाकार सुरबईहा नाम से प्रसिद्ध गोरेलाल बर्मन ने हाल ही में संपन्न राजिम माघी पुन्नी मेला में मीडिया सेंटर की टीम से अपनी बातें सांझा करते हुए कहा। उन्होंने कहा कि आज हम सभी डिजीटल दुनिया में है, जहां फेसबुक, इंस्टाग्राम, यू-ट्यूब में एक क्लिक करने पर पूरी दुनिया हमें देखती है। गीत ऐसा हो जो लोगों के हृदय को स्पर्श करें। मैनें अपने गीतों में पारंपरिक गीतों को समाहित किया है।कोसा के साड़ी पहनाहू तोला ओ… गीत को प्रसिद्धि मिलीगोरेलाल बर्मन ने कहा- कोसा के साड़ी पहनाहू तोला ओ….. गीत को प्रसिद्धि मिली, जिसमें पति-पत्नि के प्रेम को दर्शाया गया है। इस गीत में कहीं भी आधुनिकता की होड़ नहीं है। माघी पुन्नी मेला में इस बार सभी व्यवस्थाओं की तारीफ करते हुए कहा कि पुलिस पायलेटिंग कलाकारों को सम्मान देना, भोजन, मंच व्यवस्था इस बार बहुत ही अच्छा लगा।एक कलाकार पैसों से ज्यादा सम्मान का भूखा होता
गोरेलाल बर्मन ने कहा- एक कलाकार पैसों से ज्यादा सम्मान का भूखा होता है।
पहले हमें वो स्थान नहीं मिलता था, जो मिलना चाहिए लेकिन अब ऐसा नहीं है। सारी सुविधाएं दी जा रही है। नए कलाकारों को मेहनत से कभी नहीं घबराना चाहिए। उन्हें छत्तीसगढ़ की माटी से लगाव होना चाहिए। अपने स्वाभिमान के विपरित कार्य नहीं करना चाहिए, जो भी करें उसमें पूरी तरह डूब जाए तभी सफलता मिलता है।इस क्षेत्र में रूझान कैसे आया ?इस क्षेत्र में रूझान कैसे आया के प्रश्न पर कहा कि बचपन से ही प्रसिद्ध गायकों जैसे केदार, मस्तुरिया, नवलदास को सुनकर सीखा। 1990 में मेरा पहला कैसेट बना छुनुर छुनुर पैरी बाजे रे… इस गीत की बहुत सराहना हुई। जिसके लिए खुमान साव ने मुझे पत्र भेजे जिससे मुझे प्रोत्साहन मिला। तब से गायन का सफर जारी है।आज तक मेरा कोई भी गाना फ्लॉप नहीं हुआगोरेलाल बर्मन बताते हैं- सबसे बड़ी बात यह है आज तक मेरा कोई भी गाना फ्लॉप नहीं हुआ है। आगे बताया कि मैं कभी भी व्यवसायिक रूप से नहीं गाता। गीत के धुन और मेटर देखकर गाता हूं। अजब जिंदगी गजब जिंदगी फिल्म में मैंने कार्य भी किया।मंच और फिल्म में अंतर ?मंच और फिल्म अंतर बताते हुए कहा कि फिल्म में करेक्टर बनी होती है, लेकिन मंच में, खुद बनाना पड़ता है।
मंच प्रस्तुति के समय पब्लिक के मूड के हिसाब से गीत गाता हूं। उन्होंने बताया कि गुरू घासीदास पर फिल्म बनाने का मेरा सबसे बड़ा सपना है अगर मौका मिले तो यह सपना जरूर पूरा करूंगा।फिल्म सिटी निर्माण से क्या लाभ होगा?फिल्म सिटी निर्माण से क्या लाभ होगा पूछने पर बताया कि एक ही स्थान पर सारी सुविधाएं कलाकारों को मिल जायेगी। छत्तीसगढ़ में ऐसा माहौल है कि अधिकांश दर्शक गांव में वे रहते है वे टॉकिज नहीं जा सकते। इसलिए हर ब्लॉक में टॉकिज होना चाहिए जिससे दर्षकों को फिल्म देखने का मौका मिलेगा, फिल्म हिट होगा औरआर्थिकपक्ष मजबूत होगा।बप्पी लहरी से मिला था ऑफरहिन्दी फिल्मों के बारे में उन्होंने बताया कि उन्हें बप्पी लहरी से फिल्म में गायन के लिए ऑफर मिला था पर किसी कारणवश नहीं जा सका। भविष्य में कभी मौका मिला तो जरूर जाऊंगा। मेरी आवाज में रिकार्डिंग राजकीय गीत को एक साल में लगभग 12-13 लाख लोग देंखे, जो मेरे लिए बहुत बड़ी बात है।