झिटकू मिटकी

cgfilm.in “झिटकू मिटकी” की कहानी एक गांव की पृष्ठभूमि पर आधारित है, जो पारिवारिक रिश्तों, समाजिक मुद्दों और छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति की सुंदरता को दर्शाती है। फिल्म का संगीत भी बहुत आकर्षक है, जिसे दर्शकों ने पहले ही सराहा है। इस फिल्म की खास बात यह है कि इसमें छत्तीसगढ़ी लोक जीवन और संस्कृति को खूबसूरती से चित्रित किया गया है, जो स्थानीय दर्शकों से जुड़ने में मदद करेगा। फिल्म के निर्माता और कलाकारों ने भी फिल्म के प्रमोशन में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

खासतौर पर फिल्म के गीत, संवाद और छत्तीसगढ़ी बोली ने फिल्म को और भी खास बना दिया है। फिल्म में दर्शकों को एक ताजगी और स्थानीय पहचान का अहसास होगा, जो छत्तीसगढ़ी सिनेमा को और भी बढ़ावा देगा। “झिटकू मिटकी” की रिलीज के साथ ही छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री को एक और मील का पत्थर मिलने की संभावना है। फिल्म के निर्माता आशा जताते हैं कि यह फिल्म छत्तीसगढ़ी सिनेमा को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाएगी और दर्शकों का दिल जीतेगी।

छत्तीसगढ़ की बहुचर्चित फिल्म  झिटकू मिटकी का प्रचार प्रसार इन दिनों बस्तर अंचल में किया जा रहा है। इस दौरान फिल्म के मुख्य कलाकार लालजी कोर्राम और निर्देशक राजा खान उपस्थित जन समूह से झिटकू मिटकी की पौराणिक कथा से संबंधित वार्तालाप कर रहे हैं और फिल्म का पोस्टर प्रमोशन भी किया जा रहा है। बस्तर की वर्षों पुरानी अधूरी प्रेम कहानी पर आधारित छत्तीसगढ़ी फिल्म झिटकू मिटकी आगामी 7 फरवरी को संपूर्ण सिनेमाघर में प्रदर्शित होने वाली है। इस फिल्म में बस्तर स्टार लाल जी कोर्राम और लवली अहमद ने अभिनय किया है।

‘झिटकू मिटकी’ छत्तीसगढ़ी लोक जीवन और संस्कृति की एक प्रमुख पहचान बन चुकी है, जो राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाती है। यह नृत्य और संगीत का संगम है, जो छत्तीसगढ़ के ग्रामीण जीवन की खुशियों और कठिनाइयों को खूबसूरती से प्रस्तुत करता है।

‘झिटकू मिटकी’ का नाम स्थानीय बोली और वेशभूषा से जुड़ा हुआ है, और यह छत्तीसगढ़ के हर छोटे-बड़े आयोजन का हिस्सा बन चुका है। यह नृत्य एक तरह से ग्रामीण जीवन के उत्सवों का प्रतीक है, जिसमें पुरुष और महिलाएं साथ मिलकर स्थानीय संगीत के साथ नृत्य करते हैं। इस परंपरा में न सिर्फ मनोरंजन होता है, बल्कि यह छत्तीसगढ़ी संस्कृति की जड़ों से गहरी पहचान भी बनाती है।

लोकगीतों और लोकनृत्यों का संगम ‘झिटकू मिटकी’ में खास तरह के वाद्य यंत्रों का उपयोग किया जाता है, जिनमें मुख्य रूप से ढोलक, मंजीरा और झांझ शामिल हैं। इन यंत्रों की धुनों के साथ थिरकते लोग संस्कृति के रंग में रंगे हुए होते हैं, और यह अनूठा नजारा आसपास के क्षेत्रों के लिए एक आकर्षण का केंद्र बन जाता है।

यह नृत्य छत्तीसगढ़ी समाज में एकता, सौहार्द और सांस्कृतिक जुड़ाव का प्रतीक है। साथ ही, यह बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक को जोड़ता है और हर आयु वर्ग के लोग इसमें शामिल होते हैं। इस लोक कला को बढ़ावा देने के लिए कई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जो राज्य की धरोहर को संजोने और प्रसार करने का महत्वपूर्ण माध्यम बन चुके हैं।

‘झिटकू मिटकी’ केवल नृत्य नहीं, बल्कि यह छत्तीसगढ़ के पारंपरिक जीवन की खुशबू है, जो समय के साथ और भी समृद्ध होती जा रही है।

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