राउत नाचा
राउत नाच या राउत-नृत्य, यादव समुदाय का दीपावली पर किया जाने वाला पारंपरिक नृत्य है। इस नृत्य में राउत लोग विशेष वेशभूषा पहनकर, हाथ में सजी हुई लाठी लेकर टोली में गाते और नाचते हुए निकलते हैं। गांव में प्रत्येक गृहस्वामी के घर में नृत्य के प्रदर्शन के पश्चात् उनकी समृद्धि की कामना युक्त पदावली गाकर आशीर्वाद देते हैं। टिमकी, मोहरी, दफड़ा, ढोलक, सिंगबाजा आदि इस नृत्य के मुख्य वाद्य हैं। नृत्य के बीच में दोहे गाये जाते हैं। ये दोहे भक्ति, नीति, हास्य तथा पौराणिक संदर्भों से युक्त होते हैं। राउत-नृत्य में प्रमुख रूप से पुरुष सम्मिलित होते हैं तथा उत्सुकतावश बालक भी इनका अनुसरण करते हैं।
आमतौर पर नृत्य के साथ गए जाने वाले दोहो में आदिवासी जीवन शैली का वर्णन किया जाता है। जनजातीय दर्शन और उनके आदर्श संगीत और गीतों का जो प्रतिबिंबित होता हैं वह दर्शको को मंत्रमुग्ध करके दूसरी दुनिया में ले जाता हैं। इसमें संगीत की विविधता हैं। सांस्कृतिक प्रदर्शनों में प्रमुख संगीत वाद्ययंत्र मांदर, ढोल और ड्रम हैं। दिवाली त्योहार के सात दिनों के लिए बेहद कल्पनाशील और निपुण नाटक रावत नाचा मनोरंजन का एक लोकप्रिय रूप है। यह नृत्य और संगीत के रूप में विविध महाभारत कालीन युद्ध की कहानियों को एक अनोखे ढंग से चित्रित करता है। साथ ही कवि कबीर और तुलसी की छंद छत्तीसगढ़ के प्रागैतिहासिक आदिवासी समुदायों के मध्य में प्राचीन काल के स्मृति से भर देती है।
राउत नाचा भगवान कृष्ण के साथ गोपी के नृत्य के समान है। समूह के कुछ सदस्यों द्वारा गीत गाया जाता है, कुछ वाद्ययंत्र बजाते है और कुछ सदस्य चमकीले और रंगीन कपड़े पहनकर नृत्य करते हैं। नृत्य आमतौर पर समूहों में किया जाता है। नर्तक हाथो में रंगीन सजी हुयी छड़ी और धातु के ढाल के साथ और अपनी कमर और टखनों में घुंघरू बांधते है। वे इस नृत्य में बहादुर योद्धाओं का सम्मान करते हुए प्राचीन लड़ाइयों और बुराई पर अच्छाई की अनन्त विजय के बारे में बताते हैं। नृत्य राजा कंस और भगवान कृष्ण के बीच पौराणिक लड़ाई का प्रतिनिधित्व करता है और जीत का जश्न मनाया। और शाम को कई गांवो में मातर मढ़ई का आयोजन किया जाता है।