CGFilm – छत्तीसगढ़ी की कला और संस्कृति की महक अब देश के साथ-साथ विदेशों में पहुंचने लगी है। खासकर यहां की संस्कृति और परंपरा से आज सभी परिचित हैं। यहां हर त्यौहारों को बेहद खास तरह से मनाया जाता है। इसके अलावा यहां के खान-पान के तो सभी दीवाने हैं। इसी कड़ी में न्यूयॉर्क (अमेरिका) से श्रीमती विभाश्री साहू ने एक सुंदर कविता भेजा आप सभी के लिए। इसका शीर्षक है- बरी-बिजौरी के सुआद… तो आप खुद ही सुनिए…
अलका परगनिहा के स्वर में सुनिए सुआ गीत…
छत्तीसगढ़ में दीवाली पर्व के पूर्व से सुआ गीत गाने की परंपरा है। इसे लेकर कई सारे छत्तीसगढ़ी गीत भी आए हैं, तो अलका परगनिहा के स्वर में सुनिए सुआ गीत… सुवा लहकत हे डार में…।
आपको बता दें कि सुआ नृत्य व गीत की परंपरा सदियों से चली आ रही है। पीढ़ी दर पीढ़ी महिलाएं इस सुआ गीत के साथ नृत्य करती हैं। सुआ नृत्य करने वाली महिलाओं के समूह को दान स्वरूप धान, चावल प्रदान किया जा रहा है। सुआ गीत गाने की यह अवधि धान की फसल खलिहानों में आ जाने से लेकर उन फसलों की परिपक्वता के बीच का समय होता है, जहां कृषि कार्य से किसान को विश्राम मिलता है। प्रत्येक वर्ष इसका आरंभ दीपावली के समय शंकर और पार्वती विवाह में गौरा पर्व के साथ होता है, जो अगहन माह दिसंबर-जनवरी के अंत तक चलता है।
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